Rabindranath Tagore 
Rabindranath Tagore’s Selected Stories [EPUB ebook] 

Sokongan

गांव की किसी एक अभागिनी के अत्याचारी पति के तिरस्कृत कर्मों की पूरी व्याख्या करने के बाद पड़ोसिन तारामती ने अपनी राय संक्षेप में प्रकट करते हुए कहा- ”आग लगे ऐसे पति के मुंह में।”


सुनकर जयगोपाल बाबू की पत्नी शशिकला को बहुत बुरा लगा और ठेस भी पहुंची। उसने जबान से तो कुछ नहीं कहा, पर अन्दर-ही-अन्दर सोचने लगी कि पति जाति के मुख में सिगरेट सिगार की आग के सिवा और किसी तरह की आग लगाना या कल्पना करना कम-से-कम नारी जाति के लिए कभी किसी भी अवस्था में शोभा नहीं देता?


शशिकला को गुम-सुम बैठा देखकर कठोर हृदय तारामती का उत्साह दूना हो गया, वह बोली- ”ऐसे खसम से तो जन्म-जन्म की रांड भली।” और चटपट वहां से उठकर चल दी, उसके जाते ही बैठक समाप्त हो गई।


शशिकला गम्भीर हो गई। वह सोचने लगी, पति की ओर से किसी दोष की वह कल्पना भी नहीं कर सकती, जिससे उनके प्रति ऐसा कठोर भाव जागृत हो जाएे। विचारते-विचारते उसके कोमल हृदय का सारा प्रतिफल अपने प्रवासी पति की ओर उच्छ्वासित होकर दौड़ने लगा। पर जहां उसके पति शयन किया करते थे, उस स्थान पर दोनों बांहें फैलाकर वह औंधी पड़ी रही और बारम्बार तकिए को छाती से लगाकर चूमने लगी, तकिए में पति के सिर के तेल की सुगन्ध को वह महसूस करने लगी और फिर द्वार बन्द करके बक्स में से पति का एक बहुत पुराना चित्र और स्मृति-पत्र निकालकर बैठ गई। उस दिन की निस्तब्ध दोपहरी, उसकी इसी प्रकार कमरे में एकान्त-चिन्ता, पुरानी स्मृति और व्यथा के आंसुओं में बीत गई।


शशिकला और जयगोपाल बाबू का दाम्पत्य जीवन कोई नया हो, सो बात नहीं है। बचपन में शादी हुई थी और इस दौरान में कई बाल-बच्चे भी हो चुके थे। दोनों ने बहुत दिनों तक एक साथ रहकर साधारण रूप में दिन काटे। किसी भी ओर से इन दोनों के अपरिमित स्नेह को देखने कभी कोई नहीं आया? लगभग सोलह वर्ष की एक लम्बी अवधि बिताने के बाद उसके पति को महज काम-धाम ढूंढ़ने के लिए अचानक परदेश जाना पड़ा और विच्छेद ने शशि के मन में एक प्रकार का प्रेम का तूफान खड़ा कर दिया। विरह-बंधन में जितनी खिंचाई होने लगी, कोमल हृदय की फांसी उतनी ही कड़ी होने लगी। इस ढीली अवस्था में जब उसका अस्तित्व भी मालूम नहीं पड़ा, तब उसकी पीड़ा अन्दर से टीसें मारने लगी। इसी से, इतने दिन बाद, इतनी आयु में बच्चों की मां बनकर शशिकला आज बसन्त की दुपहरिया में निर्जन घर में विरह-शैया पर पड़ी नव-वधू का-सा सुख-स्वप्न देखने लगी। जो स्नेह अज्ञात रूप जीवन के आगे से बहा चला गया है सहसा आज उसी के भीतर जागकर मन-ही-मन बहाव से विपरीत तैरकर पीछे की ओर बहुत दूर पहुंचना चाहती है। जहां स्वर्णपुरी में कुंज वनों की भरमार है, और स्नेह की उन्माद अवस्था किन्तु उस अतीत के स्वर्णिम सुख में पहुंचने का अब उपाय क्या है? फिर स्थान कहां है? सोचने लगी, अबकी बार जो वह पति को पास पाएगी तब जीवन की इन शेष घड़ियों को और बसन्त की आभा भी निष्फल नहीं होने देगी। कितने ही दिवस, कितनी ही बार उसने छोटी-मोटी बातों पर वाद-विवाद करके इतना ही नहीं, उन बातों पर कलह कर-करके पति को परेशान कर डाला है। आज अतृप्त मन ने भी एकान्त इच्छा से संकल्प किया कि भविष्य में कदापि संघर्ष न करेगी, कभी भी उनकी इच्छा के विरुध्द नहीं चलेगी, उनकी आज्ञा को पूरी तरह पालेगी, सब काम उनकी तबीयत के अनुसार किया करेगी, स्नेह-युक्त विनम्र हृदय से अपने पति का बुरा-भला व्यवहार सब चुपचाप सह लिया करेगी; कारण पति सर्वस्व है, पति प्रियतम है, पति देवता है।


बहुत दिनों तक शशिकला अपने माता-पिता की एकमात्र लाडली बेटी रही है। उन दिनों जयगोपाल बाबू वास्तव में मामूली नौकरी किया करते थे, फिर भी भविष्य के लिए उसे किसी प्रकार की चिन्ता न थी। गांव में जाकर पूर्ण वैभव के साथ रहने के लिए उसके श्वसुर के पास पर्याप्त मात्रा में चल-अचल संपत्ति थी।


इसी बीच, बिल्कुल ही असमय में शशिकला के वृध्द पिता कालीप्रसन्न के यहां पुत्र ने जन्म लिया। सत्य कहने में क्या है? भाई के इस जन्म से शशिकला को बहुत दु:ख हुआ और जयगोपाल बाबू भी इस नन्हे साले को पाकर विशेष प्रसन्न नहीं हुए।


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Bahasa Hindi ● Format EPUB ● Halaman-halaman 228 ● ISBN 9781329909274 ● Saiz fail 0.4 MB ● Penerbit Sai ePublications ● Diterbitkan 2016 ● Muat turun 24 bulan ● Mata wang EUR ● ID 5039079 ● Salin perlindungan tanpa

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