Premchand 
Sangram [EPUB ebook] 
Part 1-5

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सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं।

सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदालतों का खर्च इतना बढ़ गया है कि कोई गरीब आदमी वहां न्याय के लिए जा ही नहीं सकता। जार-सी भी कोई बात कहनी हो तो स्टाम्प के बगैर काम नहीं चल सकता। उसका कितना सुडौल शरीर है, ऐसा जान पड़ता है कि एक-एक अंग सांचे में ढला है। रंग कितना प्यारा है, न इतना गोरा कि आंखों को बुरा लगे, न इतना सांवला होगा, मुझे इससे क्या मतलबब वह परायी स्त्री है, मुझे उसके रूप-लावण्य से क्या वास्ता। संसार में एक-से-एक सुंदर स्त्रियां हैं, कुछ यही एक थोड़ी है? ज्ञानी उससे किसी बात में कम नहीं, कितनी सरल ह्रदया, कितनी मधुर-भाषिणी रमणी है। अगर मेरा जरा-सा इशारा हो तो आग में कूद पड़े। मुझ पर उसकी कितनी भक्ति, कितना प्रेम है। कभी सिर में दर्द भी होता है तो बावली हो जाती है। अब उधर मन को जाने ही न दूंगा। कुर्सी से उठकर आल्मारी से एक ग्रंथ निकालते हैं, उसके दो-चार पन्ने इधर-उधर से उलटकर पुस्तक को मेज पर रख देते हैं और फिर कुर्सी पर जा बैठते हैं। अचलसिंह हाथ में एक हवाई बंदूक लिए दौड़ा आता है।

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ภาษา ภาษาฮินดี ● รูป EPUB ● หน้า 202 ● ISBN 9781329909106 ● ขนาดไฟล์ 0.6 MB ● สำนักพิมพ์ Sai ePublications ● การตีพิมพ์ 2017 ● ที่สามารถดาวน์โหลดได้ 24 เดือน ● เงินตรา EUR ● ID 5317246 ● ป้องกันการคัดลอก ไม่มี

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