क्या ताकती हो, प्रेमा? मैं ऐसा मुर्ख नहीं हूँ, जैसा तुम समझती हो। मैंने भी आदमी देखें हैं और मैं भी आदमी पहचानता हूँ। मैं तुम्हारी एक-एक बात को गौर से देखता हूँ मगर जितना ही देखता हूँ उतना ही चित्त को दुःख होता है, क्योंकि तुम्हारा बर्ताव मेरे साथ फीका है। यद्यपि तुमको यह सुनना अच्छा न मालूम होगा मगर हार कर कहना पड़ता है कि तुमको मुझसे लेश-मात्र भी प्रेम नहीं है। मैंने अब तक इस विषय में ज़बान खोलने का साहस नहीं किया था और ईश्वर जानता है कि तुमसे किस कदर मुहब्बत करता हूँ। मगर मुहब्बत सब कुछ सह सकती है, रुसवाई नहीं सह सकती और वह भी कैसी रुसवाई जो किसी दूसरे पुरुष के वियोग में उत्पन्न हुई हो। ऐसा कौन बेहाय, निर्लज्ज आदमी होगा जो यह देखें कि उसकी पत्नी किसी दूसरे के लिए वियोगिन बनी हुई है और उसका लहू उबलने न लगे और उसके हृदय में क्रोध की ज्वाला धधक न उठे। क्या तुम नहीं जानती हो कि धर्मशास्त्र के अनुसार स्त्री अपने पति के सिवाय किसी दूसरे मनुष्य की ओर कुदृष्टि से देखने से भी पाप की भागी हो जाती है और उसका पतिव्रत भंग हो जाता है।
Premchand
Prema [EPUB ebook]
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语言 印地语 ● 格式 EPUB ● ISBN 9789390963300 ● 文件大小 0.4 MB ● 出版者 Prabhakar Prakshan ● 发布时间 2021 ● 下载 24 个月 ● 货币 EUR ● ID 8319884 ● 复制保护 Adobe DRM
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