ओशो के जाने के बाद ऐसे कई विवाद हैं जिनसे ओशो संन्यासी भी परेशान हैं। उन्हें खुद नहीं पता कि इतने विवाद क्यों हैं, इसलिए जब कोई मित्र उनसे इन विवादों के बारे में पूछता है तो उनके पास उनकी कोई सही व ठोस जानकारी नहीं होती। यह पुस्तक उन्हें उन विवादों की बारीकियों से परिचित करवाती है। जैसे, ओशो की मृत्यु प्राकृतिक मृत्यु नहीं थी, ओशो ने अपनी पुस्तकों का कॉपीराइट करवा रखा था, ओशो नाम अब एक ट्रेडमार्क हो गया है जिसे कोई और प्रयोग नहीं कर सकता, पूना में स्थित ओशो कम्यून के आए अनेकों परिवर्तन गैरकानूनी एवं मनगढ़ंत हैं। एक तरफ इन विषयों पर विवाद है तो कहीं उन लोगों के कारण विवाद हैं जो ओशो की देशनाओं एवं निर्देशित ध्यान विधियों तथा आश्रम व्यवस्था को ठीक उसके विपरीत कर रहे हैं। कौन मिलावटी है, तो कौन दिखावटी। कौन ओशो को बेच रहा है तो कौन ओशो को बचा रहा है? सब कुछ इस पुस्तक को पढ़कर स्पष्ट हो जाता है।
Shashikant Sadaiv
Osho Ke Baad Ka Vivad [EPUB ebook]
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Språk Engelska ● Formatera EPUB ● Sidor 311 ● ISBN 9788194433620 ● Filstorlek 0.7 MB ● Utgivare Prabhakar Prakshan ● Publicerad 2024 ● Nedladdningsbara 24 månader ● Valuta EUR ● ID 10225459 ● Kopieringsskydd Adobe DRM
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